शुक्रवार, 20 जून 2014

आओ प्यार की भाषा बोलें। आओ हिंदी बोलें।

हिंदी की दशा उस माँ के जैसे हो गयी है जिसे  " थोपा हुआ " कह कर उसे बेघर कर दिया जाता है। तमिल और तेलुगू वालों की एक बात समझ में नहीं आती मुझे कि अंगरेजी बोलने से उनकी भाषायी अस्मिता पर कोई आघात नहीं लगता तो हिंदी बोलने से कैसे लग जाता है। घर में कुत्ता तो  पल जाएगा किन्तु बूढ़ी माँ थोपी हुयी लगती है। हिंदी माने उर्दू, हिंदी माने तमिल, हिंदी माने तेलुगू, कन्नड़, ओड़िया, बंगाली, मैथिली, डोगरी। 

भारत की सभी क्षेत्रीय भाषाओ को पूर्ण स्वायत्तता  और सम्मान  के साथ लेकर चलने में यदि कोई भाषा समर्थ है तो वो हिंदी ही है। अंगरेजी की प्रकृति दमनकारी है। यह वर्गभेद का अहसास कराती है। मैंने अक्सर देखा कि लोग रुआब जमाने के लिए अंगरेजी गिटपिटाते हैं। 

हिंदी लड़ती  नही ,यह  दिलों को जोड़ती है। 

हिंदी है वही जिसे कहते तमिल तेलुगू, 
सांझी जबान में बसी है हिंद की खुशबू। 

आओ प्यार की भाषा बोलें।  आओ हिंदी बोलें। 


रविवार, 8 जून 2014

गीली खुशबुओं वाली भाप

पीले कनेर के फूल
असाढ़ की बारिश
भीगी हुयी गंध।
जी करता है 
अंजुरी भर भर पी लूँ
गीली खुशबुओं वाली भाप।
और चुका दूँ सारी किश्तें
चक्रवृद्धि ब्याज सी
बरस दर बरस बढ़ती प्यास की।
चूर चूर झर रही
चंद्रमा की धूल, कुरुंजि के फूलों पे
कच्ची पगडंडियों से गुजरती
स्निग्ध रात उतर जाती है।
स्वप्नों की झील में
कंपित जलतरंग, दोलित प्रपात
फूट रहे ताल कहीं राग भैरवी के।
ओह्ह …
यह परदा किसने हटाया ?
कि धूप में पड़ी दरार
घाम में विलुप्त ख्वाब
रेत हुआ मौसम
निर्जल वन में,
सूखे काठ सा मन ।

शनिवार, 7 जून 2014

बात सुनो पछुआ पवन


बात सुनो पछुआ पवन
बात सुनो पछुआ पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन
बात सुनो पछुआ पवन
परदेसी पाती के अक्षर में पाने को
घिरते हैं अर्थ कई नयनों में बावरे
दोपहरी ग्रीसम की राहों में टक बांधे
खोले है बनजारे मन के सब घाव रे
अंखियों में पड़ आई झाईं की टीस लिखो
और पढो गीले नयन
बात सुनो पछुआ पवन
पीपल के पत्तों में डोला है सूनापन
पनघट की पाटी पर संझा के पांव पड़े
शहरों ने छीन लिए बेटे जवान सभी
बुढ़िया-से झुके-झुके गुमसुम सब गाँव खड़े
जाओ ना और कोई बेटा तुम छीनकर
लाने का देखो जतन
बात सुनो पछुआ पवन ।

....आचार्य रामपलट दास