मंगलवार, 15 जुलाई 2014

एक कजरी गीत (Kajari)

एक कजरी गीत अभी लिखे है । हमारे गांव में इस समय महिलाये झूले पर बैठ कजरी गा रही होंगी। पेंग मारे जा रहे होंगे। हलकी बारिश में भीगे ज्वान नागपंचमी की तैयारी में अखाड़े में आ जुटे होंगे और मैं यहाँ ७०० किलोमीटर दूर कम्प्यूटर तोड़ रहा हूँ। खैर आप लोग लोकभाषा में लिखे इस गीत और भाव को देखिये। 
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हमका मेला में चलिके घुमावा पिया 
झुलनी गढ़ावा पिया ना। 

अलता टिकुली हम लगइबे 
मंगिया सेनुर से सजइबे, 

हमरे उँगरी में मुनरी पहिनावा पिया

नेहिया देखावा पिया ना
हमका मेला में चलिके घुमावा पिया 
झुलनी गढ़ावा पिया ना। 

हँसुली देओ तुम गढ़ाई
चाहे केतनौ हो महंगाई,

चलिके  सोनरा से कंगन देवावा पिया
हमका सजावा पिया ना।


हमका मेला में चलिके घुमावा पिया 
झुलनी गढ़ावा पिया ना। 

बाला सोने के बनवइबे  

पायल चांदी के गढ़इबे,

माथबेनी औ' बेसर बनवावा पिया
झुमकिउ पहिनावा पिया ना।


हमका मेला में चलिके घुमावा पिया 
झुलनी गढ़ावा पिया ना। 

गऊरी शंकर धाम जइबे
अम्बा मईया के जुड़इबे ,

इही सोम्मार रोट के चढावा पिया
धरम तू निभावा पिया ना।


हमका मेला में चलिके घुमावा पिया 
झुलनी गढ़ावा पिया ना। 





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