गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हिंदुत्व: दो मिनट का विमर्श (Hindutva)

मैं धर्म को जीने के तरीके के रूप में देखता हूँ। जो मेरा जीने का तरीका है उसे दुनिया हिंदुत्व के नाम से जानती है। हिंदुत्व को समझने से पहले आप को पोस्ट मॉडर्निटी का कांसेप्ट समझना होगा। आप जितने सरल तरीके से हिंदुत्व को समझना चाहते हैं उतने सरल रूप में समझ सकते हो... 

परहित सरिस धरम नहि भाई। परपीड़ा सम नहि अधमाई। 

आपको जटिल पांडित्य में जाने की भी छूट है। पंडिज्जी पिंडा पारने तक पीछा नहीं छोड़ेंगे। आप ईश्वर को मानें न मानें, किसी को भी ईश्वर मान सकते हैं। खान पान, वेश भूषा, रीति रिवाज व्यक्तिगत रूप से भिन्न हो सकता है। सब कुछ यहाँ है।

दो बातें मुझे खटकती हैं

पहली कि सैद्धांतिक रूप से वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाले महज रसोई और जातियों में सिमटे हैं। जो हिंदुत्व की सबसे बड़ी ताकत थी (द्रवण पात्र ) वही कमजोरी समझी जा रही।

दूसरी हिंदुत्व धीरे धीरे सैन्यीकरण की ओर अग्रसर है। तलवार और कपट के जोर से हिंदुत्व पर निरंतर आघात हुए और हो रहे उसकी प्रतिक्रिया खतरनाक है। मैंने किसी हिन्दू को मिशनरी के रूप में धर्मांतरण कराने का उदाहरण या डरा धमका कर हिन्दू बनाने का कोई उदाहरण नही देखा। सिख धर्म के रूप में पहली प्रतिक्रिया हम देख सकते हैं जिसे बड़ी होशियारी से हिन्दूओं से अलग धर्म के रूप में बताया गया।

मुझे भय इस बात का है कि रिएक्शन करने वाले टुच्चे और गुंडे हैं जो अपने आकाओं को खुश करने के लिए चिल्ल पों मचाते हैं गाली गलौज करते हैं।

रियेक्ट करने वालों का स्तर गुरु गोविन्द सिंह और शिवाजी जैसा होना चाहिए।

गैर हिन्दू धर्मों के विद्वानों को समझना होगा कि धर्म परिवर्तन/ हिन्दुओं के प्रति उपहासात्मक रवैया उनके टुच्चे पन को उघाड़ देता है। साथ ही नफरत के बीज बोता है।

हिन्दू स्वभाव से शांत और प्रेमी होता है। प्रेम ते प्रकट होईं भगवाना। और मैं चाहता हूँ इसके इस स्वभाव के साथ छेड़छाड़ न हो।