गुरुवार, 25 जून 2015

रात भर

आग में भीगता ही रहा रात भर,
रेशमी रेशमी सा जला रात भर I
इश्क की आंच होती रही शबनमी,
चाँद होंठो पे ठहरा रहा रात भर I
कैसे पागल ये बादल हुआ आज भी
तेरी जुल्फें भिगोता रहा रात भर I
मुस्कराती हवा जानें क्या कह गयी,
फूल का दिल धड़कता रहा रात भर I
इस तरह से कहानी मुकम्मल हुयी,
नाम तेरा मैं लिखता रहा रात भर I

बुधवार, 24 जून 2015

लागि झूमि झूमि बरसे बदरिया




मानसून 2015  की पहली बारिश ....रात भर बूंदे झरती रहीं ...पानी का झर्रा बालकनी से कमरे में जानबूझ कर आ रहा था ...सावन की आहट ... एक कजरी का लिखना तो तय था ..ये अलग धुन में तैयार किया है ...आनंद लीजियेगा ...
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लागि झूमि झूमि बरसे बदरिया,
आए ना संवरिया ना।
कारी कारी घटा छाई
चारउ ओर अन्हराई
चारउ ओर अन्हराई-२
रतिया लागे अइसे जइसे मोर सवतिया,
कइसे बोली बतिया ना।
दईव जोर जोर गरजा
कांपे लागे हो करेजा
कांपे लागे हो करेजा-२
परलय आज होई गिरेला बिजुरिया,
हीलेला बखरिया ना।
जमुना बाढ़े भरिके पानी
राम कईसे हम जुड़ानी
राम कईसे हम जुड़ानी-२
सुग्गा बोले जाने कऊन से नगरिया,
मिले ना खबरिया ना।
...डॉ पवन विजय