गुरुवार, 3 नवंबर 2016

अगहन की अगवानी

बादलों का घूँघट
हौले से उतार कर 
चम्पई फूलों से ,
रूप का सिंगार कर
अम्बर ने प्यार से , धरती का तन छुआ ।
मखमली ठंडक लिये ,महीना अगहन हुआ ॥
धूप गुनगुनाने लगी
शीत मुस्कुराने लगी
मौसम की ये खुमारी,
मन को अकुलाने लगी
गुड़ से भीना आग का जो मीठापन हुआ ।
मखमली ठंडक लिये ,महीना अगहन हुआ ॥
हवायें हुयी संदली
चाँद हुआ शबनमी
मोरपंख सिमट गये ,
प्रीत हुयी रेशमी
बातों-बातों मे जब ,गुम कहीं दिन हुआ ।
मखमली ठंडक लिये ,महीना अगहन हुआ ॥

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ह्यूमन कंप्यूटर' = भारतीय गणितज्ञ स्व॰ शकुंतला देवी जी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर